सिर्फ अल्फाज नहीं दिल की तसव्वुर समझो
कैसी सूरत तेरी कुछ, दूर उतर कर समझो..
मैं न कहता था किसी रोज तुम भी मानोगे..
ये जहां जिस्म नहीं जिस्म की परछाईं है..
कौन कहता है कि घर यहां महफूज अपना..
जिस तरफ देखिए जलजले का आलम है..
वक्त जैसा भी हो एक रोज गुजर जाएगा..
कौन जाए किधर ये वक्त को मालूम नहीं..
जो गुजर गया उसे अब भूल जा, जो बचा उसे ही सवार ले...
किसी जख्म को क्यों याद कर, जो भी हाथ में वो फना करें..
मेरे दिल में भी कुछ सवाल हैं तेरे लब पे भी शिकायतें..
कितने सवाल थे जेहन में किस किस का हल तलाशते..